Saturday, September 07, 2024

Khamoshi khamosh kahan ?


तन्हाई ख़ामोश कहाँ

बहुत बोलती है -

ये अक्सर मेरे वजूद से टकरा कर 

ख़ुद अपनी पहचान, पता पूछती है।


तन्हाई ख़ामोश कहाँ 

बड़ा बोलती है -

बरसों दबी हसरतों की 

बेसाख़्ता ज़ुबान खोलती है 

ना तौलती, ना परखती 

तवानाई जिगर की

मेरे खीजो तेवर से कब ये सम्भलती 

अधूरे से ख़्वाबों की परवाज़ की ख़ातिर

खुले आसमान पर 

अपना फ़लक और मकान ढूँढती है 

हद होती है उस दम, 

जब भटके क़दम ले 

यक़ीन और भरोसे के तारों को तक कर

अनजान राहगीरों से 

 अपने ठिकाने की खबर पूछती है ।


मेरी तन्हाई ख़ामोश कहाँ -

बहुत बोलती है।


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