Yusuf-Zuleikha, Shirin-Farhad, Laila-Majnun ... You stirred them up then why part in pain? I am tired of holding on to emotions. Have lost all skills of keeping my heart to myself, safeguarding it with all that I have. Help me out to sanity.
क्यों इंसानियत का इम्तिहान लेते हो?
इम्तिहान ही है या
तुम इंतिक़ाम लेते हो?
परवरदिगार हो,
रहनुमा भी हो
फिर जोखिम भरी राहों पे
बंदगी को यूँ ढकेल देते हो?
खबर नहीं क्या
बिखरने को अब कुछ नहीं बाक़ी,
एक ठोकर भी लगी
तो बने क़ातिल,
इस मोड़ के अंजाम
पोशिदा हैं क्या तुम से
फिर तुम क्यों अनजान बने
हमारी रफ़ाक़तो वफ़ा के नसीब
मुशक़्क़तों का अंजाम
लिखा करते हो?
रहमानीयत की सौं तुमको
पलटाओं हमें फिर से
पुरसुकून अंधेरों की तरफ
नूर उल्फत का नहीं सहता हम को
ना ही इसकी तौहीन की हिम्मत है हमें
बढ़ाओ हाथ के उठ पाऊँ
इस चकाचौंध की घुप गहराइयों से
आबाद आशिक़ों की महफ़िल में मेरी जगह नहीं
क्यों मेरी रुस्वाई का
अज़्म लिए बैठे हो?
मदद या अली
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