Sunday, September 15, 2024

shikayat

Tears are pouring down - non stop and unabated. I am grateful that I am able to communicate with some composure for now - at least through filter of phone/ internet. Reality - तुम जानो या हम! 

I know, I've accepted - You don't like my 'rising in love'. I will stay grounded but spare me the pain. 

Can't take it any more. Nor can I inflict it on another. I am done with ego. I am done with games of pull and push. So have decided - I will keep still and silent...expected transaction is: please deliver me safe to the other shore 🙏


शिकायत है -

तुमसे नहीं तो और किस से ?

ये जो आँख मिचौली है 

वादों की 

फिर उन्हें तोड़, बेवजह फरियादों की -

ये सहती नहीं हमें 

और बिलकुल भी सोभती नहीं तुम्हें। 


खुशबू चार पल की 

सजा दी यूँ, क्यों मेरे ख्वाबों के तले?

सेज नरम फूलों की हो

ये पा तुम से हौसला, हम 

बढ़ चल तो 

फिर क्यों तुमने फिर 

दामन को मेरे चाक किया? 

हर सू हमें  मिलते गए 

कांटे ही थे मेरे सिरहाने तले !


माँगा था क्या तुम से 

ये होश तो नहीं, पर 

हम तैराक कहाँ थे 

जो तुमने सैलाबों के 

अता कर दिए 

लगातार सिलसिले?


इससे तो अकेला ही दीया था बेहतर 

कम ही सही 

मुस्तक़िल लौ की रौशनी तो थी,

स्थिरता की लपट में 

मेरी नज़र देखती तो थी,

जाने किस रक़ाबत में 

तुम ने रोशन किये 

मेरे कंदीलों में आशाओं के चिराग 

इन मशालों की लपट में 

खो गए हम हो चकाचौंध 

इन की क़तार में 

थे कई बेवफा, अधूरे से किरदार -

हर बार हम बढे जैसे प्यासे 

की थी पुकार 

हासिल हुआ न कुछ 

हम रहे प्यासे, उस मै के तलबगार 

पी कर जिसे आसूदगी हासिल 

जीने का जिगर मिले !


ऐसे मँझदार में डाला है 

आप ने रबो परवरदिगार 

हम है, कमज़ोर, व नातवाँ 

है ये दिल टुटा हुआ, बेआब 

नहीं रखना है कोई आस 

अब तुम से भी क्यों हमें आसरा मिले 

तुन्हे कर दी है आस्था अर्पण 

करना नहीं तुम्हारे वादों पर 

पहले सा ऐतबार। ... 


छोड़ो मेरी बातों को 

तहे दिल से लो सलाम 

अच्छा है जो तुच्छता मेरी हसरत की 

तुम से बापर्दा  ही रहे - 

लाओ पलटा दो मेरे आँगन में 

खिज़ाओं के फिर वही

पुराने से  सिलसिले 🤲🏾



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