जानती हूँ
जब ये मिट्टी ढलेगी
माथे पर सलवटें सजेंगी
कमर खमीदा कर दांत झडेंगे
तो मरघट के सन्नाटों के दरमियाँ
सिर्फ मैं और तुम
क़रीब होंगे -
फिर क्यूँ तकूँ
मैं किसी ओर
मुझे अपना लो।
जब ये मिट्टी ढलेगी
माथे पर सलवटें सजेंगी
कमर खमीदा कर दांत झडेंगे
तो मरघट के सन्नाटों के दरमियाँ
सिर्फ मैं और तुम
क़रीब होंगे -
फिर क्यूँ तकूँ
मैं किसी ओर
मुझे अपना लो।
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