अब के बरस
क्या देना है और क्या दे
ले लेना है?
हर साल निरंतर ताक चुकी
अनुभव से पहचान चुकी
देना और फिर ले लेना
तुम्हारी रचना है
तुम से पा हंस
बिन शिकवा लौटा देना
हर दीन पार्थव की
अल्प अर्चना है।
क्या देना है और क्या दे
ले लेना है?
हर साल निरंतर ताक चुकी
अनुभव से पहचान चुकी
देना और फिर ले लेना
तुम्हारी रचना है
तुम से पा हंस
बिन शिकवा लौटा देना
हर दीन पार्थव की
अल्प अर्चना है।
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