ख्वाब गुस्ताख सही मासूम होते हैं
- गुनाह तो नज़रों का है
जो खाव्मखाह ही
ख्यालों के कारवां में
उम्मीद ढूंढती है ...
in response to Sunita Singh Goyal's beautiful poetry:
- गुनाह तो नज़रों का है
जो खाव्मखाह ही
ख्यालों के कारवां में
उम्मीद ढूंढती है ...
in response to Sunita Singh Goyal's beautiful poetry:
ख़्वाब गुस्ताख़ होते हैं
बिना जिए नहीं मरते हैं ...
और होते हैं पत्थर-दिल भी,
किन्हीं मजबूरियों से नहीं पिघलते हैं ...
हाँ कभी-कभी थककर सो जाते हैं,
फिर बहुत देर तक नहीं उठते हैं ....
और कभी डर जाते हैं
छोटे बच्चों की तरह और,
बिना नींद भी सोने का नाटक करते हैं ....
पर ख़्वाब गुस्ताख़ होते हैं,
बिना जिए नहीं मरते हैं ....
ख्वाबों की नींद को कई बार,
लोग समझ लेते हैं उनकी मौत,
कुछ दिन मातम मनाते हैं,
फिर आगे बढ़ लेते हैं ....
पर सोये हुए ख्वाब, इक दिन जागते हैं,
कभी चुपके चुपके अंगड़ाईयां तोड़ते,
आँखें मलते, परिपेक्ष को पहचानते,
और कभी बच्चों से शोर मचाते,
चिडचिड़ाते, माँ से दूध मांगते,
उठ जातें हैं जीने के लिए ....
क्योंकि जब तक जिएंगें नहीं,
उन्हें मौत नहीं आएगी...
ख़्वाब गुस्ताख़ होते हैं,
बिना जिए नहीं मरते हैं
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