चाँद उतरा था
मेरे आँगन में लिए
सूरज की चंद शुआओं का नूर:
मैंने पलटाया उसे ये कह -
चाहा है जिस शम्स को तहेदिल से भरपूर
यूँ कैसे ले लूँ
कैसे करूँ टुकड़ो में बटी
मेरे आँगन में लिए
सूरज की चंद शुआओं का नूर:
मैंने पलटाया उसे ये कह -
चाहा है जिस शम्स को तहेदिल से भरपूर
यूँ कैसे ले लूँ
कैसे करूँ टुकड़ो में बटी
तुम्हारी पलटी चाहत को क़ुबूल?
दस्तूरे इश्क़ भी है
और रस्में व्यापार भी है क़ायल
सो उसूलन है लाज़िम
कि मिले पुरे के बदल
में पूरा ही हुज़ूर।
फिर हमने कब नाप तौल में
कोई चूको कसार छोड़ी है?
कोई चूको कसार छोड़ी है?
हमने तो रब्बानियत का नाम ले
बोरसी में ईंधन जोड़ी है
तो बस जिस आंच में बस
मैंने हर दिन के
मैंने हर दिन के
सोलह पहर काटी है
मुन्तज़र रहना है मंज़ूर
मुकम्मल की तकमील की
उम्मीद ज़रा भर भी नहीं।
मुंतज़िरो मुश्ताक़ ज़रूर होते हैं
तनहाई की गहन में पिन्हां
गोकि गहन हो गहरा
गोकि गहन हो गहरा
और नागवार बहुत,
कुज़ा व कुचा रहे
साक़ी व साक़ी के तलबगार सही
ठहराए रखेंगे
यकीन से क़ुदरत पर; नज़र
आया कभी जो शम्स समूचा
मेरी सुबह की रौनक़ बन कर
सजदा है शुक्र का
वऱना परवाह नहीं
वऱना परवाह नहीं
रहे रात सही
ख़िलक़त से मेरी
अकेली यूँ ही गुफ़्तार सही।
चाँद जाओ
कि मेरे दिल की बाती मैं
लौ और लपट बाकी है
गो है कमजोर सही,
तनहा वीरानों में
लौ और लपट बाकी है
गो है कमजोर सही,
तनहा वीरानों में
वफ़ादारी से जलती तो है
सूरज न आए बेशक
लिये अपनी शुआओं का नूर
ड्योढ़ी पे ठहरे अन्धेरो की
क़तई मुझे कोई परवाह नहीं -
मेरी नज़रों को
अपनी ढिबरी की लौ में
सिमटने की आदत सी है.
सिमटने की आदत सी है.