कुछ के कटाक्ष
मन तड़पा गए
कुछ की अनकहे सहज भाव
दिल सहला गए
फिर बुद्ध सज्जन की सरगोशि
कर्णस्पर्श कर ये समझा गए -
बस आज से आज ही तलक
तो जीने की बात है
कल कोई साथ था
आज किसी ने छोड़ा हाथ है
क्या फ़र्क़ पड़ता है जब कल
तुम्हारे ही प्रांगण में
फिर सब से मुलाक़ात है!
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