Wednesday, February 22, 2017

बहाओ

कुछ के कटाक्ष
मन तड़पा गए 
कुछ की अनकहे सहज भाव 
दिल सहला गए 
फिर बुद्ध सज्जन की सरगोशि 
कर्णस्पर्श कर ये समझा गए -
बस आज से आज ही तलक 
तो जीने की बात है
कल कोई साथ था 
आज किसी ने छोड़ा हाथ है 
क्या फ़र्क़ पड़ता है जब कल 
तुम्हारे ही प्रांगण में 
फिर सब से मुलाक़ात है!

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