इंसानियत का साथ
स्वार्थ में सोखा
कोरा, अधूरा होता है -
चाँद की चाँदनी
धूप की रोशनी
चिड़ियों की रागिनी
में बसूँ कुछ ठौर
फिर तो ये साँस चले।
स्वार्थ में सोखा
कोरा, अधूरा होता है -
चाँद की चाँदनी
धूप की रोशनी
चिड़ियों की रागिनी
में बसूँ कुछ ठौर
फिर तो ये साँस चले।
No comments:
Post a Comment