Friday, February 17, 2017

तुम्हारी आँखों से दुनिया जब जानती थी
गुलों में रंगो, बू थी
पलटी नज़र तो ख़िजाँ बढ़ी -
इस के आँगन में
मैं ने ख़ुद को पहचाना है. 

No comments: