Saturday, August 31, 2024

Misunderstanding brews understanding!

 You'll ask - gussa? 

I will say - no, hurt. 

Why should I tune into classical ragas of structured saa re ga ma.... when wild tunes offer as much soothe to heart?

जानूँ मैं -
तुम शब्दों के कारीगर 
alchemist, suave
अपनी स्थिरता से नित करो 
पन्नों का जादूगर सा शृंगार
सधे, मँझे हो खिलाड़ी 
जीवनपथ के समझदार किरदार 
हम अल्हड़ -
भौरे सा विचरूँ 
मन उपवन के चित पर 
चाहूँ भी तो अपना ना पाऊँ 
सरल सौम्य व्यवहार 
भावनाओं में उत्लाऊँ में 
गुल गुल की भिन्न भीनी ख़ुशबू ले
अपनों में वितराऊँ 
अपना समझ है साझा तुम से
जो जब जैसा समझ में आया 
मेरी भाषा में ना सुर है, 
अलंकृत स्वर ना राग अलाप
कभी आधी अनकही सी बातें 
जो कहाँ समझते आप?
क्षीण ध्वनि या चाहे 
वाणी में हो कभी उखाड़,
बस उस पल का मेरा सच बसा है
मेरे चंचल वाचन में।
मैं नहीं brave
इतनी कि अपना सच झुठला के 
सामाजिक सही को, सही से
शब्दालंकार की दुर्लभ भाषा में बतलाऊँ 
नहीं सोच के जीना हमको
कर लिया है परिपक्व विचार
सुनने का कोई जब्र ना लो तुम
साधु बने इतराओ
यूँ भी है ज़िद्द मेरी ही  
ना कर पाऊँगी
अपनी रचना में मैं बदलाव
जाओ,
मान लिया मैंने श्रद्धा से
तुम से, सब से हार
जीवन की बहती धारा में 
ये भी था एक brief सा -
हम-तुम का पड़ाव।

Friday, August 30, 2024

FAIL



दिल मेरा है स्लेट (slate)
मदरसा का, और 
सोलह से साठ के सफ़र में 
ये तख़्ती घिस चुकी है 
सबक़ पढ़ते, सीखते;
हर बार पलट परीक्षा में 
एक ही सवाल परोसा जाता हैं
प्यार का -
'हाँ' कि 'ना'?
प्यार अमोल है 
जाने किस घड़ी, कभी
मेरी रूह की पत्री पर
ये पाठ गुदा गया ऐसा 
कि हर बार 
'हाँ' लिख आते हैं हम 
फिर परिणाम वही -
जी आप फिर FAIL हैं।


Self reflection over life lessons reveals the flaw in my soul. Now what to do - I am not the Creator. Take responsibility.


 ज़मीन सूखी थी

और तलब ख़ामोश 

जब छाये बदरा 

कि बरसें घनघोर 

बस इतनी ख़ता सरज़द हुई -

मुझे 'ना' कहना नहीं आया!


Wednesday, August 28, 2024


 There's a space 
In my heart
That seeks to fill 
With yours and you
Yet I continue 
To be my own 
Prisoner 

Tuesday, August 27, 2024

 Strife, struggle 

Jihad

Yuddh, sangram -

With whom?

Self, or

You?


I am tired Allah

I am giving up 

Keep generational curse live

Give me respite.

 Isn't laughter the easy way to heaven?


हंसने के बहाने ढूँढने पे

कब 'पाप' की पैरहन डाली तुमने? 

Paradox of Desire

 Playing the game with Universe .... in its own way. 

The rule says:

"On the spiritual plane everything works the other way around


The Paradox of Desire and Fulfillment: 


In many spiritual teachings, the less you desire, the more you receive." 


Let the rules remain unchanged 🙏🏼

Paradox of desire -
I read 
and stopped
Asking of You.

Monday, August 26, 2024

Love

 Pash asked today - "If I were to ask you one word - just one word in English - what it would be?"

This was easy peasy lemon squeezey for me. Despite the heartaches and heartbreaks - there is only one word, one song, one emotion that fires my heart - Love (in its true, unsullen form - it's a beauty that's joy forever!


Love -

One word
Lo and behold
Its kernel holds within
- You and me
 So many,
And, so much more.

Its beauty manifest
In our yearns and sate
Song of that bird
In heart of nature
Rains that resound
In lush over land
At times it is found
In company of mate
In holding of hands
Sharing of woes and jest....
Hearth of all hearts
Is warmed by emotion;
Earth and water
Fire and air
Spaced in love 
Produce the material here.

At the very least 
Love adorns 
Tale of that nerd 
Who fell in love
Without rhyme or reason
Then knelt in surrender
To Lord
Of Creation;
Then and lift 
gaze to beyond 
It's crystal clear -
Love propagates
It's at core 
Of progress n progression 
Be it at work or 
In non-extinction of race,
Science or art
Human evolution;
Beat of the heart
Our breath's pace
All find succour 
From love's Grace .

Reflection above 
Is mere fraction
Of whole -
Our parents
Our friends
Our siblings and more
In every direction 
Its to face of love 
We turn 
There's no way 
To avoid and make a run 
So long as we're alive
With love alone 
Life's rhythm is set
Love is its pulse.

Saturday, August 24, 2024

कश्मकश

 प्यार अजूबा है - सच। 

It is from Him - True

So if it is from God then how come  God becomes a jealous God and expects denial of this miracle? 

No answers!

Will wait and see.


अजीब कशमकश है ये -
लोभ पड़ी पाने की,
इक ओर 
साथ की चाहत खींचे
गहराइयों में उतरी जाऊँ
कि मेरा सीप पड़ा है 
वो पकडे अपने दिल में भींचे 
ललक बड़ी है 
उतरूं भीतर 
ले डुबकी जा ले आऊं ।

क ब से 
मानो कुरुक्षेत्र छिड़ा है  
मन अंतरद्वन्द में है फुँकता  
शंख फूंका है तुने साक़ी 
तो तुम्हीं दो बतला
किस ओर तानु बाण कमान मैं 
किस तरफ़ मैं 
शस्त्र चलाऊँ -
घायल कर दूँ खुद को
या फिर अपनी बली चढ़ाऊँ ?

निस दिन निस दिन  
चित ललकारे है
हर तरफ़ पड़ी रेखाएँ हैं 
पग डग मग मापे 
उसके मेरे धर्म 
बड़ी बड़ी सीमाऐं 
ग्रंथ पाठ फिर भी 
मोह कुछ यूँ सुलगाएं 
कहते प्यार बड़ा है निर्मल
फिर भी शास्त्र वाचे है 
मगर, परन्तु  किंतू
त्याग त्याग पंडित चीत्कारे
पलट आगे न बढ़ तू.

लोक सबक़ है बिलकुल दूजा -
सब कहें 
प्यार की झूठी माया 
करे मुग्ध कलूटी काया 
प्रीत सौतेली 
हरदम इसने प्रेम पथिक को लूटा
ले सुख चैन, 
कर नयन से नींद नदारद 
जाती मर्यादा की आहुति 
सुलग रही लपट हवन में 
समझ बुझ की ये वाणी सुन 
मोह में  ना पड़ प्यारे;
पढ़ तज, त्याग, निर्मोह का मंतर  
जाप निरंतर कर ले 
होनी नहीं जो कदापि मुमकिन 
स्वैच्छा सूली चढ़ ले  
वरना अंजाम लिखा है 
बद है 
ना खेल प्रीत मिचोली
मिले बदल बस उपहास, ठिठोली
अगर शुरू हुवे 
मिलन बिछोह के 
प्रचंड प्रसंग!

 
उफ़
उत्तर जो ना दो तुम तो
मैं मंथन में उतलाऊँ 
भाते नहीं क्यों मन को मेरे
ये पाप पुण्य के फेरे
मुँद नज़र बैठूँ क्या,
धृतराष्ट्र बन शायद 
मैं बच पाऊँ?
जानूं ये तो मेरे करे से 
कहाँ कोई टलनी है 
होनी है जो होगा,
कलम नहीं मेरे हाथों में 
तो सोच समझ  क्या लेना?
बन मूक, बहिर मैं 
अंधियारे की परतें ताकूँ 
सन्नाटों की ध्वनि साधुं 
साँस जपन की माला ताड़े।

मूक बने तुम चुप हो भगवन 
क्यों देते नहीं निदान?
चलो फिर से सहते है , कह  
मेरे भाग नहीं बलवान'
निष्क्रियता से सहज सह लूँ मैं 
यही सरल समाधान
प्रभुत्व का धर्म करता है 
पल पल  यही पुकार -
तुम क्यों रहो भला अनजान 
तड़पन अर्पण से 
सुनो मेरे पीड़न की गुहार,;
व्यथा समझो मानस की 
इस से पहले 
लिखो तुम विधि विधान 
दिल को देती 
बस यही दिलासा -
है पास नहीं तो खोना कैसा
पर प्रभु पा कर 
खोना नहीं आसान ।







  


beware

Am I lost or lack a defined purpose in life?

Or, may be the soul strife has drained me out. 

Motto is: we shall overcome. 

मौसम गीला है
आज मन भी
चाह नहीं ज़िंदा रहने की
पल पल है एहसास
आती जाती साँस 
मगर दिल की बोरसी
शीतल माटी,
अंतर्मन में जंग छिड़ी है
प्रभु पार्थ विच बिसात बिछी है - 
मन चाहे कुछ और इधर,
उधर अब बोझल मनन की बारी
चाल बदल दी मैंने झट से
मन की बढ़ती बाज़ी काटी; 
विदुर विदिशा बोले सखी रे,
तुम देखो
पढ़ लो समस्त इतिहास 
पन्नों पर वक़्त खुला पड़ा है 
बन इसी सत्य का साक्षी -
प्रेम लिप्सा क्षणभंगुर सदा की 
क़तई फिसल ना जाइयो
कदम कदम पे परखे है वो
प्रभुलीला को दिल से क़तई
मत लगाइयो!

 Missing you Baba 😭


अब भी - 

हर सवेरे उठ कर मैं

रब से बातें कर के मैं
चहूँ ओर फैले सन्नाटे के 
सीने पर सर टिकाती हूँ
प्रीत की शमा जला कर मैं
चाय की चुस्की ले
ठंडे मन को गरमाती हूँ
सब हैं
सब है 
नहीं मगर तुम से बतियाँ
बाबा जब से गये हो तुम 
ख़्वाबों की है सुलग बुझी 
कहाँ नोक झोंक 
कहाँ दीन और दुनिया की बतियाँ
शोख़ी शरारत सब रूठ गये 
मेरी सुबह का कोना ख़ाली है
ना दिशा की चिंता 
ना भीड़ में भटकन का भय 
रात और दिन के पलटन में 
यादों का सफ़र 
बस जारी है ।

Wednesday, August 21, 2024

अश्क़ और इश्क़

Taking solace, applying brakes in acceptance. Tears will fall. Heart will ache. So be it - may the Light enlighten all 🤲🏼

इश्क़ की बात है -
अश्क़ों से शुरू 
अश्कों पे ख़त्म होती है 
दिल का पैमाना हुआ लबरेज़ तो
छलकने की ललक होती है।

आह 
जाओ तुम्हें  छोड़ा
ख़ुदाई सनम की ख़ातिर
यूँ भी 
तारिकी कहाँ बुझती है 
इक लौ से लिपट कर तन्हा,
बचती है और कुछ साँसें 
तो तनहा ही 
हो जायेंगी बसर,
ज़िंदगी आज़माइश
और सब्र
के दरमियाँ
बेवजह बसर होती है।

Tuesday, August 20, 2024

sawaal

Struggling to understand the meaning and purpose of emotional turmoil that my energy fields have encountered in past few weeks. Since nothing is meant to be without reason - I'm driven to ask WHY?

चित मेरा चंचल 
और मापूँ मैं
विचलन तेरे मन की?
कैसे जानूँ 
या मटिया दूँ
ये कह केवल पिप्सा है 
अतृप्त प्यासे मन की?
क्यों मचला ये अब 
समझ सकूँ ना 
तपस कहाँ गई
मेरी बरसों की?

पर नर के मैं 
चक्षु झांकूँ 
हो निर्लज्ज
उत्तर ढुंढूँ 
उनके अंतर में;
क्या सच है 
क्या है माया मिथ्या;
और है तो क्यों है -
प्रौढ प्रांगण में 
खड़ी हूँ जब
लांघ चुकी मैं 
यौवन की गलियाँ 
मेरी गिनती अब  
वृद्घगण में,
फिर क्यों मनन
यूँ अटका है अद्भुत    
प्रीत मरीचिका के
मंथन में?  
बेमक़सद भटकन है ये 
या छिपा पड़ा है 
कोई राज़ अंजाना?
कालचक्र की है क्रीड़ा
या मंशा  
तेरे मेरे रब की? 

बताओ ना 😭

खोज है


खोज है -
कई अन्य समक्ष 
जिन में 
प्रतिबिंबित है 
एक स्वयं -
प्रतिमूर्ति हम सब 
उस अनन्य की ।

कोई गिला नहीं

How does one lament to the One who sets forth such turbulence in heart drawing one to another? Then it's supra- not just superhuman effort to Captain one's ship to stay anchored to sanity aka रीति रिवाज! May be prayers help both parties to be delivered of temptation!

लगता है -
सुन ली उथल पुथल  
मेरे जज़्बात की हलचल 
शायद प्रार्थना में था असर 
कि हिले लब मेरे इधर 
और लगा किवाड़ 
बंद करवा दी तुम ने 
दस्तक की यूँ भी 
आदत अता आपने 
की नहीं हमें; 
फिर सही भी यही 
क्यूँकि जीवन काल में 
मिलन की कसक लगा 
बिछोह की नियति 
तो यूँ भी 
तुम्हारे हाथों लिखी 
हर कहानी में 
प्रीत की तक़दीर है।  

Monday, August 19, 2024

Raksha Bandhan

I am eternally grateful for so many well meaning friends in my life.


 रक्षा बंधन है आज -

तो भाइयों को ढूँढ़ा

मिले कई -

मगर नहीं था कोई रिश्ता खूनी

कोई अपना सगा नहीं था 🙏🏼

 

 

अब ज़िद्द मेरी है

 

धर्म - कर्म के 
झंझट से ऊब चुके हैं हम
थम गये अब थक थक कर
बहुत हुई भटकन
लो पकड़ो वापस ले लो
लो रखो अपनी क़लम
साक्षी -
दिशा सूचक जो नहीं दिया 
मेरे नहीं बढ़ेंगे क़दम।

Sunday, August 18, 2024

I am angry. I am upset. It's swadhishthana chakra in a whoosh!

There's a lacuna 
In soul
It sucks in 
with full force
At slightest show of affection
It gets asking for more. 

So now let me know
Since all 
Is from You, and 
To You is set to return
In the name of Love
And the only Lord,
What should
I keep
And what's fair 
To weed
Once and for all
Give up 
Love when it shows  
Its face
Or reject 
Desire to love 
And be loved
As farce?

Saturday, August 17, 2024

Sat Chit Ananda

Clarity is always a source of joy. 

Sat Chit Ananda - that's the natural order of attaining joyful heart. Truth brings clarity to conscious awareness and that culminates in peaceful joy.

Today is a clear day. 

आज की अच्छी सी बात -
आसमान था साफ़
और बादल 
टहल रहे, नहीं चंचल 
नहीं भरे हुए 
बूँदों की नहीं थी दरकार 
एक गिलहरी 
ख़ामोश, बुद्ध सी स्थिर और मौन
सूर्य की किरणों के स्पंदन 
से हो मगन 
सब थे चित प्रसन्न! 


Friday, August 16, 2024

Laxman Rekha

 It's safe to have boundaries, know them and not overstep. Otherwise pain and loss of peace is the price to pay. No illusions. No delusions. This mantra will keep risk of heartache at bay.

Today
I am
Remembering my boundaries -
Laxman rekha 
That I'm not 
Meant to cross;
And so 
I retreat;
My hollow shell
Shall be cover
It's safe shelter 
To my soul. 

A transgression?

There is uplifting energy in banter cross and across genders. I know first hand - it heals. Does it class as sin? A transgression?

Did I transgress -
The written codes
Prescribed mores 
Of scripture
When steeped in pain
Shrugging care 
Carelessly 
In vain
I took solace in 
Lighthearted banter
With tickle of flirt 
Will it class -
As rovings  
Of wanton desire
Or outright transgression?


Thursday, August 15, 2024

Hum ko hai vishwas

 

It's hard to take people and Almighty at face value. Today I am flustered with His attempts to create dramas in my life. Why? I am not looking for one. On the face of it and with limited, fistful body of knowledge that I possess - Creator=Rabb=nourisher of body-mind and soul. It's hard not to place trust at His disposal. May the 'seen' match the 'unseen'.

आसमान है मुट्ठी भर

नीला, खुला और साफ़

लाली पुष्प की लगती कोमल

हरियाली लगती ख़्वाब

दृश्य अगर ये दर्पण है 

तो मन सोचे ये बात 

दिल की धड़कन  

में प्रश्न प्रबल हो 

पूछे है अनायास 

क्या मालिक इनका 

निश्छल है?

सत्य का अगर रूप हो साक्षी

कर लूँ क्या विश्वास?

Wednesday, August 14, 2024

All that is left behind is a story

 Stories have been my lamp and light, navigating through highs and lows of life, choosing my dos and don'ts, this morning I wanted to honour the role that they've play in human life.


So many stories
Hers and his
Intertwine with
What's mine
On every walk
I've heard them speak 
Through plots 
Of good versus
Evil, 
Characters intermingle 
To portray
The attributes 
That enable 
To choose 
How to navigate thru
Get to You -
Treasure of every
Hero's journey.


Sunday, August 11, 2024

दोस्ती पुरानी लगती है

Many experiences, so many questions to feed a thinking mind and finally a rest in age old philosophy: kindred souls meet before meeting again in their earthly form. 

And when they meet again, there's a plan and purpose to perform

 Just accept and let Divine unfold 🙏🏼

मनमीत - 
मैं बताऊँ गीत  
और तुम गाओ
रूहों के प्राची सफ़र की 
क्या यही रही रीत?




शिकायत

For over past few days I've faced intense internal drama of again heading over heels in blind yearn to feel fuller than I am. I was perturbed with my inability to change Ammi's circumstance as I wished to. The emotional vacuum thus created served to seek being filled with illusions and perceptions that mind was creating in a love starved soul. 

I resisted. I flowed.

And then discovered that it was all for a new body of knowledge and wisdom to be bestowed.

Thank you.

Now you have to listen to my lamentation though.

जहाँ कहीं हमें 
अपने अंतर्मन में 
होता है सुकून का 
ज़रा आभास सरल
बदल जाता है सिग्नल 
इंगित कर देते हो 
इक और मोड़ 
दर्शा देते हो 
अपना नया विसाल!

चल पड़ेंगे, पर 
इतनी हलचल 
अंतर्द्वंद से टकराव 
मेरे निरंतर रिसते घाव 
हैं क्यों तुम्हें दरकार?

बिन उथल पुथल 
भी तो हम 
हैं ही तैयार 
सीखने वो जिधर 
ले बढ़ चले -
तुम्हारी शमा की नज़र। 


 


Saturday, August 10, 2024

प्यासी है आत्मा

 प्यास है तो सही

मगर क्यूँ किस लिए

सर्वतत्व से आभूषित हूँ

छत अपनी 

संतान सुखी 

है लोभ नहीं 

धन माया प्रलोभन मुक्त हूँ

फिर क्यों है वितृषित, अनजान 

क्या चाहे मन है?



Friday, August 09, 2024

दिल की लिखावट

 Dil agar kitab hota

दिल अगर किताब होता 
और हर लम्हा 
उसका वर्क सादा सा
 क्या लिखता ज़ेहन 
ज़िंदगी के क़लम से 
जज़्बात की सुर्ख़ स्याही उँडल कर? 
नाम कोई बेपरवाह अनजान का
या फिर उसका
जो यूँही कुछ 
दिल से बेसाख़्ता क़रीब हो
नाम उस का गुदा होता 
क़ुदरत की अमिट तहरीर बन 
यूँकि उस के मन के लिखे 
से मेरी लिखाई का मिलना ही 
मेरी खूबसूरत तहरीर होता।

वो सुबह कभी तो आयेगी

 Feeling restless within at this beautiful hour when dawn breaks through with light. All is quiet. Even the birds seem to be enjoying a morning nap. In this me and meri khamoshi moment, I reflect on what holds me captive to my past - is it cancerian wafa? Or, known security of limiting beliefs which knots me firmly to the bygone?

पौ फट रही सुबह की

सूरज की किरनें बेध चली हैं

अंधेरे के सिमटते आँचल में

मेरा अतीत एक गाँठ से बंधा है

जिसे छोड़ने में 

बेईमानी का एहसास छुपा है

शायद इसीलिये 

रौशनी से मुँह मोड़े

मेरा समय अड़ा है।

Tuesday, August 06, 2024

In quest

I am at a cross road facing uncertainty of which one to take as a daughter - masterly inactivity or full on war?

On my mat
Transforming with teacher's call
From Tadasana 
To Savasana
I transform
To trace essence 
Of my core;
I align
And re-align
In Veerbhadrasana 
From warring pose one
To two 
I'm humbled as warrior
In surrender to You
I finally lay and listen
To hear
Guru within 
Speak in whisper
Asking to direct all that
I got in that moment 
The peace,  the deliverance 
To my heart's quest.
It asks to visualise
With closed eyes 
On my chidakasha 
Who, what that might be?
As ripples of thought
Smoothen 
I see it rise to surface 
One face -
It's her 
in a peace slumber

Ammi may you be at peace and be loved always!

Monday, August 05, 2024

I am facing a difficult choice. Masterly inactivity or full on war?


 I am on the mat

Transforming with teachers call

From Tadasana 

To Savasana

I perform

To align 

Re-align

In Veerbhadrasana 

Only to be humbled as warrior

And when I finally 

Lay to rest

The Guru within whispers

To send it all 

The peace and deliverance 

To my heart's quest

On the chidikasha 

I see surface 

One face -

It's her in peaceful slumber.

Sanity

 PS: Sanity thy new name is Sabina 

A lovelorn heart - especially when it's aching to give love to another, unconditionally, is seeking completion, fulfilment of dharma that it was born to deliver. Sanity has no place here. It will vacillate and vibrate whenever the Supremo pitches it against another vessel that also seeks fulfilment in love.

That's what I am experiencing. It's my personal need and the other's. It presents illusions and excuses to mind - I am special for the other... we fit together... I am needed... this is a sapling of love that could grow into a lush, sweet fruit bearing tree. Humbug!!!! Shush!!!!

Fate don't test me please.

I have moved beyond carnal desires. Let me be delivered of the need to be loved, hold hands and rest my head against a solidly reliable heart to experience completion. Otherwise, when the fog clears, all that will be left to gather will be dust and ashes of what once was a promise of heaven and ended up shattered to broken bits. I've been there. 

Know O Heart! life has brought wisdom through heartaches and heartbreaks, I have converted - from impulsiveness to sobriety and sanity 

The school lesson that Sister Lioba imparted has been long outlived.  She said that when you feel love for someone - express. A delay in expression may be lost eternally with uncertain twists and turns that life presents.

But expression risks rejection. I don't want to hurt or be hurt. So sorry Sister Lioba. I choose to stay mum. No more mortal hide and seek games of love for me. 

Sanity is, and shall remain my dharma.


NO -

This time
I won't fall
Have seen it all
Game of pull
Attract, seduce and leave!
No way -
This time 
I'll saunter away
Not letting gaze to lock
Heart'll endure block
From lure to love 
Be loved
In womanly way...
My soul shall abide
It knows
It's dharma 
At a year less than sixty
Is solely 
Sanity. 

Thursday, August 01, 2024

राम नवमी

Today is Ram Navami and a friend celebrated with verses stating that 'Ram Atari' eludes mankind as they are lost in worldly maya. I don't agree fully. I believe in Leela of life and passing enduringly through it as Ram had done with courage and equanimity. Worldly life itself is thus the instrument to attain 'राम अटारी'. I am posting link to his blog too.

 https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2022/02/blog-post.html

Note: the poem was written on Ram navami day in 2023. When edited for typos today it showed the date of 1st August 2024

राम अटारी कईसे सोभे

जो जग पग से 

मानस मन डरे ?


जंगल जंगल राम चले  

धरम करम के सिंधु पार गये  

कभी जुठे बेर चखे 

कभी सिया संग 

प्यार के रास रचे;

वीर्य वीरता के संग्राम में जूझ 

वनवास में प्रकृत 

प्रकृति से हो आलिंगन बद्ध 

जंतु मानव के मन हरे। 


हुए प्रेम विछोह में रम तप

उठे युद्ध को 

किए भय अत्याचार के

राक्षस वद्ध,

तब कहीं 

राम जी हृदय सम्राट बने ।


सो बटोही क्यूँ मोड़े

प्राची से प्रखर ये सच है - 

है राम अटारी 

इसी माया पथ पर 

सो झूम और डुबकी ले ले 

लीला सागर में तैरेगा जब तू 

पाएगा राम को पास खड़े ♥️


ईश्वर प्रणिधान

I am in Bokaro today. Came to see my ailing mother as I was not getting a response about her well being and my umpteen calls missed. The light in her eyes has uplifted my heart but her agitation yesterday, her agonising flashbacks and my sense of helplessness pervaded the day just bygone. All I can do is turn to God, kneel and pray. Allah alleviate her suffering 🤲🏼


वो ही हम कर सके ज़िंदगी में

जो रब ने करने की हामी दे दी...

जब थम गये से रस्ते,

मेहनतों का मिला ना हासिल

समझा लिया समझ को

यही है मर्ज़ियों इलाही

करमों के फल में पार्थी

है नियति भी शामिल - 

इंसानियत की परवाज़ 

होती वहीं है कामिल 

जिसको बना दिया है 

रबूबियत ने हमारी मंज़िल!