Struggling to understand the meaning and purpose of emotional turmoil that my energy fields have encountered in past few weeks. Since nothing is meant to be without reason - I'm driven to ask WHY?
चित मेरा चंचल
और मापूँ मैं
विचलन तेरे मन की?
कैसे जानूँ
या मटिया दूँ
ये कह केवल पिप्सा है
अतृप्त प्यासे मन की?
क्यों मचला ये अब
समझ सकूँ ना
तपस कहाँ गई
मेरी बरसों की?
पर नर के मैं
चक्षु झांकूँ
हो निर्लज्ज
उत्तर ढुंढूँ
उनके अंतर में;
क्या सच है
क्या है माया मिथ्या;
और है तो क्यों है -
प्रौढ प्रांगण में
खड़ी हूँ जब
लांघ चुकी मैं
यौवन की गलियाँ
मेरी गिनती अब
वृद्घगण में,
फिर क्यों मनन
यूँ अटका है अद्भुत
प्रीत मरीचिका के
मंथन में?
बेमक़सद भटकन है ये
या छिपा पड़ा है
कोई राज़ अंजाना?
कालचक्र की है क्रीड़ा
या मंशा
तेरे मेरे रब की?
बताओ ना 😭
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