Saturday, August 31, 2024

Misunderstanding brews understanding!

 You'll ask - gussa? 

I will say - no, hurt. 

Why should I tune into classical ragas of structured saa re ga ma.... when wild tunes offer as much soothe to heart?

जानूँ मैं -
तुम शब्दों के कारीगर 
alchemist, suave
अपनी स्थिरता से नित करो 
पन्नों का जादूगर सा शृंगार
सधे, मँझे हो खिलाड़ी 
जीवनपथ के समझदार किरदार 
हम अल्हड़ -
भौरे सा विचरूँ 
मन उपवन के चित पर 
चाहूँ भी तो अपना ना पाऊँ 
सरल सौम्य व्यवहार 
भावनाओं में उत्लाऊँ में 
गुल गुल की भिन्न भीनी ख़ुशबू ले
अपनों में वितराऊँ 
अपना समझ है साझा तुम से
जो जब जैसा समझ में आया 
मेरी भाषा में ना सुर है, 
अलंकृत स्वर ना राग अलाप
कभी आधी अनकही सी बातें 
जो कहाँ समझते आप?
क्षीण ध्वनि या चाहे 
वाणी में हो कभी उखाड़,
बस उस पल का मेरा सच बसा है
मेरे चंचल वाचन में।
मैं नहीं brave
इतनी कि अपना सच झुठला के 
सामाजिक सही को, सही से
शब्दालंकार की दुर्लभ भाषा में बतलाऊँ 
नहीं सोच के जीना हमको
कर लिया है परिपक्व विचार
सुनने का कोई जब्र ना लो तुम
साधु बने इतराओ
यूँ भी है ज़िद्द मेरी ही  
ना कर पाऊँगी
अपनी रचना में मैं बदलाव
जाओ,
मान लिया मैंने श्रद्धा से
तुम से, सब से हार
जीवन की बहती धारा में 
ये भी था एक brief सा -
हम-तुम का पड़ाव।

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