How does one lament to the One who sets forth such turbulence in heart drawing one to another? Then it's supra- not just superhuman effort to Captain one's ship to stay anchored to sanity aka रीति रिवाज! May be prayers help both parties to be delivered of temptation!
लगता है -
सुन ली उथल पुथल
मेरे जज़्बात की हलचल
शायद प्रार्थना में था असर
कि हिले लब मेरे इधर
और लगा किवाड़
बंद करवा दी तुम ने
दस्तक की यूँ भी
आदत अता आपने
की नहीं हमें;
फिर सही भी यही
क्यूँकि जीवन काल में
मिलन की कसक लगा
बिछोह की नियति
तो यूँ भी
तुम्हारे हाथों लिखी
हर कहानी में
प्रीत की तक़दीर है।
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