Today is Ram Navami and a friend celebrated with verses stating that 'Ram Atari' eludes mankind as they are lost in worldly maya. I don't agree fully. I believe in Leela of life and passing enduringly through it as Ram had done with courage and equanimity. Worldly life itself is thus the instrument to attain 'राम अटारी'. I am posting link to his blog too.
https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2022/02/blog-post.html
Note: the poem was written on Ram navami day in 2023. When edited for typos today it showed the date of 1st August 2024
राम अटारी कईसे सोभे
जो जग पग से
मानस मन डरे ?
जंगल जंगल राम चले
धरम करम के सिंधु पार गये
कभी जुठे बेर चखे
कभी सिया संग
प्यार के रास रचे;
वीर्य वीरता के संग्राम में जूझ
वनवास में प्रकृत
प्रकृति से हो आलिंगन बद्ध
जंतु मानव के मन हरे।
हुए प्रेम विछोह में रम तप
उठे युद्ध को
किए भय अत्याचार के
राक्षस वद्ध,
तब कहीं
राम जी हृदय सम्राट बने ।
सो बटोही क्यूँ मोड़े
प्राची से प्रखर ये सच है -
है राम अटारी
इसी माया पथ पर
सो झूम और डुबकी ले ले
लीला सागर में तैरेगा जब तू
पाएगा राम को पास खड़े ♥️
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