Saturday, July 01, 2017

life in flow

I shared expression,
spoke uncouth
released raw emotion
here on blog
As life pages
were on turn,
for so so long,
my friend, 
my silent listener
you held my heart n hand-
I wish to say adieu
for now,
given that i've  grown 
enough to sigh n sign away -
The end.

रोशनी और रौशनाई


रोशनी और रौशनाई 
दोनों ही हैं धूमिल पड़ी  
युंकि --
पिछली बार जब चोट लगी
मन के क़लम को 
आँखों से बहती रौशनाई
ने बढ़ कर 
ढ़ारस दिलाई,
अबकी वार की गहराई से पर
रूठे हैं सारे शब्द
टूटी क़लम
सुखी स्याही है.

Thursday, June 29, 2017

नमी

मौसम में आज नमी सी है
मानो है ख़बर
यहाँ कुछ कमी सी है।

दिल की दहलीज़ पर ले आयी हूँ
ख़ाली करने की उम्मीद सी है
हर उस मासूम अहसास
जिस ने थी जान भरी
तुम्हारी दस्तकों ने रवाँ की थी 
दम में आसो हसरत ....
पर ना शिकवा ना गिला
ना अब है याराने का भ्रम
साथ निभाने के हैं वादे बेदम।
रस्में वफ़ा है क्या ख़ूब निभी
आपके बेवफ़ा अन्दाज़ से -
सो बहाये देती हूँ 
आज बरसती बूँदों के संग
निसंकोंच 
अपने आँखों की नमी ।


Wednesday, June 28, 2017

हम ने बेज़ुबानी में क़रार पाया
सुना जो है -
इश्क़ कि ज़ुबान नहीं होती।
ख़ामोश सच कि तलबगार हूँ मैं
झूठी तसल्लियों की सौदागर नहीं;
बाहरी रानाईयों के ख़रीदार तुम
अहं की क़ैद में गिरफ़्तार तुम।
तुम्हारी बेरुख़ी पे मैं हैरान नहीं 
है तस्लीम दिल को तहे दिल से -
सहमे युवे सनम में 
वफ़ा की शान नहीं।

Wednesday, June 14, 2017

कामिल का कमाल

आधे अधूरे हम रहे
बाँटे बटे से तुम -
क्या इस तक़दीर को लिख
विधाता ने दिया जन्म?

नकारता है मन यूँकी
अपने रास्ते चुनता इंसान है
और पुराण में पूर्णता 
ही रब की पहचान है
फिर मुकम्मल करना  
कामिल का कमाल 
और शान है ।

Tuesday, June 13, 2017

सच की साख

क्यूँ पूछते हो
बदहाल का हाल -
झूठ हम कह नहीं सकते
सच सुनने की
तुम में कहाँ है मजाल?

Sunday, June 11, 2017

Toughening up

As if ache in heart 
was not enough
Mind stands by 
Wearied by ageing years' log
Elements in body cry
In pain, as
I immerse my time-space
In slog 
Beyond the reaches of this blog -
Hope is to turn tough!




Sunday, June 04, 2017

क़िस्सा ख़त्म

बचपन में नानी की ज़ुबानी 
कहानी सुनी
फिर बड़े शान से मुस्कुराती
करवट ले
कुछ यूँ वो थी बुदबुदाती
लो हुआ क़िस्सा ख़त्म 
कहानी हज़म ...
तो अब भी है आस
जो अटल रहे नियम
अब हुआ हमारा क़िस्सा ख़त्म -
बस मन को इस के 
सार के हज़्म 
होने का इंतज़ार है 😊

Saturday, May 27, 2017

Body to spirit
is inseparably betrothed
while there remains
any sign of life;
and, when it chooses
to say goodbye
its time
to get signed
life's Death Certificate!

Ramadan begins

On the first of Ramadan
let cyber bear witness
for renderings of my heart -
Here is nought
but gratitude
for the meaning He's brought 
to the dusk of each day
and dawn at its start.

Tuesday, May 23, 2017

तुम्हें रंगीनियों से तर कर
रंग मेरा सादा है।

Monday, May 22, 2017

ठान

उसे है आदत अपना कर 
मुकर जाने की,
हमें आरज़ू है 
परायों पे
बोझ ना बन जाने की।

रब हो तुम
तो हक़ रही
तुम्हारी विधि भ
बन्दों को आज़माने की।

इसी सराप में है गिरफ़्तार ज़िंदगी
है मुक़ाबिल में 
बंदगी और तेरी ठान 
उसे आज़माने की!

Querying cause?

Cause?
If you pause
to listen
to heart
in life's busy season -
it'll reveal to Self
on insight's horizon
as clear as
Light of Dawn
we live effect of our decision
the writ's been erased 
by no other
but our vain hand.

Sunday, May 21, 2017

there's pine,  
there's pain
along with many a lesson 
to gain
I know 
unknowingly once again
I reached out 
to embraced illusion.



Friday, May 19, 2017

Tick tock
Tick tock
goes the clock
as if to mock
the silent wait
for Eternity.

Wednesday, May 17, 2017

लफ़्ज़  भारी हैं -
सो हमने मुस्कुरा
तुम्हें जोकर
कह दिया!

Tuesday, May 16, 2017

सवाल

कहते हैं सभी -9
रूह को देखो, कि
इस में इंसान की धरी
हक़ीक़त है,
फिर जो हम
तुम्हारे चेहरे पे खींची 
लकीरों से
अपने वजूद का 
पता पूछते हैं -
क्या इसी लिए कि
तुम रूह 
हमारी ho ?

When in pain -
I am dumb
I am mute
to succour most
if it's juice
while its acute!
मूक हूँ कि
मुर्दे की जुबां नहीं होती।
कहूँ क्या मैं उनसे -
फ़िज़ाएँ जो तुम्हारा पता पूछतीं हैं?
सजी थी जो गलियाँ
आमद से तुम्हारी
तड़प मेरे हटते क़दम रोकती हैं
कहती है बढ़ बढ़
उम्मीदों की बरखा -
चलना अकेले जब एलाने क़ज़ा हो
अभी से क्यूँ  
साँसें कफ़न ढूँढती हैं?

Saturday, May 13, 2017

ना -
नहीं बनना मेतो रूह के रिश्तेदार ।

इस रिशते में
एक बार पकड़ हाथ
कभी ना छोड़ने की 
है हिम्मत दरकार....
तुमने तो कई बार 
अंधेरों को सौंप
छोड़ा है मेरा साथ।

Thursday, May 11, 2017

Give me hope

Its festival of light tonight -
I am reminded
to inch closer
towards Your rope
at a time when
every cell's in ache
life has ceased
to make sense,
rather threatens to break
resilience of spirit;
freezing fear that I mask
I turn to ask
from the lights tonight -
will You rekindle
hope?.

Wednesday, May 10, 2017

कौन ख़ाली है? -

हम, तुम
दोनों ही तो भरे पूरे हैं
ख़ालीपन के अहसास से।

Tuesday, May 09, 2017

Naaah

Naaah....
don't need my void
to be filled
with any empty word
or,  fake fragrance!

Monday, May 08, 2017

Don't compare

No Armani
nor any Vetiver
match musk
of the hour
spent in your company.

Sunday, May 07, 2017

I've put self to sleep
Without a question to you 
Knowing for consolation -
These are times 
Of pollution n adulteration
It afflicts the yield
Of lover's harp too!

So I've no expectation
For like all
Love's shelf life is also short
That too
In a heart
Driven by consumption! 
कई भावनाओं का अज़्म लिए 
बढ़ते है मुसाफिर
चुनिंदा मंज़िल की ओर,
उल्फत, मुहब्बत, इश्क़, आश्नाई
सभी की चाहत से रोशन है
उनकी अपनी तनहाई
और मैंने अपनी सच्चाई 
बस तुम्हारे वजूद में विलींन 
होने क़ी कसक में ही पाई।


आभारी हूँ -
बरसों ख़िज़ाँ रही
मगर गुज़रे महीनो की  
बहार से है मात
गुज़िश्ता हालात पर 
ये पलकझपकी का पल भारी है,
मेरी ख़्वाबीदा शाख़ों पर 
अब भी 
उल्फ़तों की हरियाली है!
I gaze at flow
Water is on move
Thames is gurgling below
In waves and many a ripple 
It breaks 
And speaks 
To awareness of my soul -
Whether I surge 
Or, choose to be still,
In river of life
There's place for fear no more
I'll eventually be carried 
Through to the shore. 
theres pine, there's pain
along with the gain
that unknowingly
I'd stepped
into illusion again!

Saturday, May 06, 2017

कहते हैं सभी
रूह को देखो, कि
इस में इंसान की धरी
हक़ीक़त है -
फिर क्यूँ हम
तुम्हारे चेहरे पे खींची 
लकीरों से
अपने वजूद का 
पता पूछते हैं?
क्या इस लिए कि
तुम रूह हो मेरी ?


Thursday, May 04, 2017

I am a phone call away
and yet he pouts to say -
I miss you.

What'll you do
I ask,
when I'm taken
light years away?

Ikigai

The speaker spoke -
what is your 'ikigai'?
what's that for which you live?
what's the reason for your being?
and my grey matter
leaped from where it was 
held captive
heeding nor so long 
but passive -
how did  I not see
its not - there's no he, no she
neither for this, nor that
all my life's been directed -
I've lived
only for You.





Life feels to've 
Covered a full circle
when every ordeal
when dealt to resolve
at its core reveals
Your Grace -
at work
every hour
to raise the bar
for human endeavour.


Sunday, April 23, 2017

तुम्हीं सम्भालो -
उसे जिसे ज़िंदगी जीने का शऊर नहीं!

वो कला जो दुनियादारी कहला
मेरे अपनो में है मशहूर हुई
ना सिखलायी तुम ने
ना इसके सलीक़े की अदा
इस कोरे दिल को
कभी मंज़ूर हुई।

Saturday, April 22, 2017

Neither time
Not this space is mine
I ease into place
To just witness
Changing scenes
Change in climes.

कौन अपना है ?
कौन पराया ?
ठोकरों ने बखूबी समझाया -

बात ख़ुद की निकली थी
रब अकेले से 
सो संध्या बेला में 
अपने साये को 
बस उसी वजूद के बल पे
निश्चिंत खड़ा पाया।

Friday, April 21, 2017

I am here -
my time is now
a mere blip
a dot
amongst many million and more 
and, this moment
is the gateway whence 
I sense 
Your presence beyond -
with infinite patience 
You wait
bur my coming's slow.

Thursday, April 06, 2017

The Hero's tale
I devoured during kid-year
Serves as compass
To my roadmap,
its message is clear -
Turn not to see
Bygones in rear,
For what once was
Is no longer there.

Wednesday, April 05, 2017

गोकि हो सबकी मंज़िल तुम्हीं
तवील राहों, तूफ़ानी रास्तों के सफ़र पे
इस या उस शहर की डगर पे
मिले हमसफ़र कैसे और कहाँ?
देखो ना -
बहुत फ़ासले हैं दिलों के दरमियाँ
हर नज़र की रोशनी है फ़र्क़
हर तनहा नज़रिया है जुदा जुदा।

Thursday, March 23, 2017

बेजा आस

मेरी सुबह, मेरी शाम -
घर से काम 
और वापस घूमती मुड़ती सड़कें तमाम 
हैं उदास -
पर ठहरी हुई है आस इस ठौर पे 
कि तुमने हमारे साथ से यूँ कह दिया -
बस सब मुझ पे छोड़ दो.।

Monday, March 20, 2017

बेफ़ायदा है ज़ीस्त में अहबाब का हुजूम
हो पैकरे ख़ुलूस तो काफ़ी है एक शख़्स

Sunday, March 19, 2017

Language sure evolves
as vocabulary expands-
in love thesaurus yesterday 
I heard
you uttered
words and phrases
conditional commitment 
that I thought were
from world of trade and commerce!

So what was that?
no binding contract?
Ahemmm! 
And further
what did you get out of it?
to what I lost, I kept mum
a cooling period!
what about life time guarantee
to love until infinity?
let me think of more...
phrase and clause
an unsigned term 
to sully and vitiate
folio of love
like....
- don't have what you ask for
when I asked for nought?
Ah one day maybe
we'll return to table
Love 
you'll listen that day 
and I'll talk
I shall
set together
an agenda to negotiate!


फिर सुबह हुई है
एक और दिन मिला
जीने और अहसास करने 
ये कि
गिर्द चमकते भुलावों, 
रिवाजों, उसूलों की टीपा तापी से 
अधिक बहुमूल्य है 
मन की कसक 
अपनी प्यास समेटे 
जो सृष्टि के सपाट कैन्वस पे
मेरे अस्तित्व की पहचान है;
हर अवहेलना से बालातर
रहूँ स्थिर यहीं 
कि मैं हूँ जहाँ
यहीं मेरा वजूद 
मेरा कर्म स्थल है।

Tuesday, March 07, 2017

I lived content
In my kingdom there was
No pestilence but peace
When he ventured in
The Pied Piper returned
Casting his spell
With magic melody.

There was cheer
There was joy
Not an iota of ploy
I let go of caution
Rejoicing in presence
Believing in Eden.
He promised to inhabit
My being until, alas
Trance of flute 
was broken.

Out of tune 
He humbled
In clumsy fumble
He gathered the pieces 
Of worn out flute.
Trying to glue
With his eyes downcast
He offered lame excuse
And I -
Who'd wandered 
Under the charm,
Now hurt sore
As a bruise,
Turn away with a cry
No more
Questions to ask
Not even  - Why?

Sunday, March 05, 2017

History of lives spent
for love speaks
pages in volumes - 
love in garbs 
of fear, passion, playing rough in romance
possession, drama and deals
games of power
rejoicing in gain
parting in pain....
I look in my mirror
to trace history 
that's mine
in the well of his soul
I peer thru'
his hooded eyes

heavy lids drooping to close
I pick up my pearl
polish and return,
to where in my heart
it belongs -
my love is my own
in here the temple
is pure.

उसने कहा था on 13.7.16

उस ने कहा:

सुना है बारिश है तुम्हारे शहर में,
 ज़्यादा भीगना मत
धुल गयी सारी ग़लतफ़हमियाँ अग़र,
 बहुत याद आएँगे हम

तो फिर हम ने कहा:

याद जो बारिश से ग़लतफ़हमी धुलने की मोहताज हो -
मेरे आँगन में नहीं पड़ती
हम ने शमा-ए-उल्फ़त जलायी है यहाँ
रहमते खुदा से लौ ले कर।

😐

Two opposites -
One dark
One light
One love
One compromise
One emotion
One rationalise
One matter
One spirit
Aching to come together
For in fusion
In re-union
Is fullness of delight.

Saturday, March 04, 2017

Gut wrenches
Pain wants to be exteriorised
Be scraped off cells
And space between the cells.

In his presence within
Rests His reflection,
I observe 
As I ache to dissect
Chisel out all that's not 
My or mine as entity.

I reach to knife -
And hear the heart cringe
Stop!

To harm life
Was not for what 
You're born.

You've signed the vow
To let live 
Give, not take life.

The sentiment to serve 
In love is all you've 
To call your own.

This is your sole reason identity -
Rest all is perceived illusion
Of reality.

होती जो बात
सिद्क़ और सदाक़त की
तब कहीं आस होती 
ताउम्र तेरी रफ़ाक़त की;
सो सिले लबों को 
जुंबिशें ना देना
यूँ भी -
वफ़ा है बात 
ज़रा नज़ाकत की!
बदलते वक़्त के साथ
बदलते है हालात और जज़्बात -
इंसान कहाँ बदलते! 

Friday, March 03, 2017

बारहा चेहरे बदल के 
पेश जो आती है ज़िंदगी
एक बार तो -
आशिक़ों के दर पे बेहिजाब आ .

रुसवा किया, 
सोजो ग़म से तारूफ करा दिया
हर बार हम ने हंस, तुझे 
बाआबरू विदा किया.

काफ़ी है

बना दिल काबा
तुम्हारी यादों तुम्हारे लापरवाह वादों का
हुई रूह गरदाँ 
तायफ़ उन अहसासों की 
जिन से वजूद की ग़िज़ा बरक़रार है...
काफ़ी है।

Thursday, March 02, 2017

fire-walk

Be beside
Lock in with eyes
Feel breath intertwine
Hold small of back
Tug gentle at fingertip
And, then -
Lo see me swirl
See me dance
Waltz over across
The fire-walk
It's set, lit up
Just for me!


Wednesday, March 01, 2017

कुछ नहीं बदला

कल आँगन में थी पसरी धूप

मुझमें जीने की चाह जागता 

किरणों में जगमगाता तुम्हारा स्वरूप 

और आज की ये सर्द शाम

सिकुड़ती साँसों से कह रहीं अविराम

पूछती हैं मुस्कुरा दुहरा कर

तुम्हारा हमेशा दिया जवाब -

कुछ नहीं बदला ?


छिटकी चाँदनी बादलों को परे सरका

खिड़की से झांका तो अहसास हुआ -

अंधेरा है वहाँ

जलाए थे ख़्वाबों के तुमने द्वीप जहां 

मेरी रात बेचैन हुई 

तो प्रशनगो मेरी तनहाई हुई -

कुछ नहीं बदला?


नमी आँखो की झिलमिला

जब बरस पड़ी बेकल

तब स्पष्ट सरगोशी में 

काल ये सच बोल गया,

है सही सब कुछ वही

हमारी कायनात 

हमारे जज़्बात नही 

बस बदले सिर्फ़ तुम -

और कुछ नहीं बदला।








Tuesday, February 28, 2017

मेरी बाती की लौ

चाँद उतरा था
मेरे आँगन में लिए
सूरज की चंद शुआओं का नूर:
मैंने पलटाया उसे ये कह -
चाहा है जिस शम्स को तहेदिल से भरपूर
यूँ कैसे ले लूँ 
कैसे करूँ टुकड़ो में बटी 
तुम्हारी पलटी चाहत को क़ुबूल?
दस्तूरे इश्क़ भी है 
और रस्में व्यापार भी है क़ायल 
सो उसूलन है लाज़िम  
कि मिले पुरे के बदल 
में पूरा ही हुज़ूर।

फिर हमने कब नाप तौल में 
कोई चूको कसार छोड़ी है?
हमने तो रब्बानियत का नाम ले
बोरसी में ईंधन जोड़ी है  
तो बस जिस आंच में बस 
मैंने हर दिन के 
सोलह पहर काटी है
मुन्तज़र रहना है मंज़ूर 
मुकम्मल की तकमील की
उम्मीद ज़रा भर भी नहीं।

मुंतज़िरो मुश्ताक़ ज़रूर होते हैं 
तनहाई की गहन में पिन्हां
गोकि गहन हो गहरा 
और नागवार बहुत,
कुज़ा व कुचा रहे
साक़ी व साक़ी के तलबगार सही
ठहराए रखेंगे 
यकीन से क़ुदरत पर; नज़र
आया कभी जो शम्स समूचा
मेरी सुबह की रौनक़ बन कर
सजदा है शुक्र का
वऱना परवाह नहीं  
रहे रात सही
ख़िलक़त से मेरी 
अकेली यूँ ही गुफ़्तार सही।

चाँद जाओ 
कि मेरे दिल की बाती मैं
लौ और लपट बाकी है
गो है कमजोर सही,
तनहा वीरानों में 
वफ़ादारी से जलती तो है
सूरज न आए बेशक 
लिये अपनी शुआओं का नूर 
ड्योढ़ी पे ठहरे अन्धेरो की 
क़तई मुझे कोई परवाह नहीं -
मेरी नज़रों को 
अपनी ढिबरी की लौ में
सिमटने की आदत सी है.



Monday, February 27, 2017


हर उम्मीद
हर अहसास से
झोली ख़ाली है मेरी ।

Saturday, February 25, 2017

ढूँढती हुँ मैं
उन नज़रों को
जहाँ शोख़ी के साथ सच की शान शोभती थी
किरदार और क़ुदरत साथ मिल के
प्यार के सच्चे रंगों से होली खेलते थे
यूँ चढ़े मन पे
कि वक़्त की चाल ने
रंग पक्का कर दिया
ऐसा -
साँझ की किरणों को भी
ये उजाला देते हैं.।

Friday, February 24, 2017

being authentic
has its price and perk
the world sees you as a jerk
however -
heart  is whole
no shadows lurk.
i love 
so i endure,
you are
so i thrive.
so be
i set you free.

Thursday, February 23, 2017

Test me not
I refuse to scribe
On your test page -
Non action, non violence is lesson
Imparted by each and every sage!
आज के सन्नाटे
को काट रही है फिर
झकझोरती हवाओं की सायँ सायँ
फ़र्क़ बस ये है -
कि पटना की हवा में लू की धधक थी
परदेस मे सर्द बर्फ़ीली फ़िज़ा से है जुस्तजू।

गुचों की रंगों बू से
अपना गुलदस्ता सजाने के लिए
खून और पसीने से सींचता है, बाग़बान
ना कि सोख्ता है सिर्फ पाने के लिए. 

सच है

कभी उल्फत कभी नखरों
के उलझाओ से
कभी विनती कभी चूमकार से
कभी तेज तकरार से
कभी गुस्से में भेड़े किवाड़ से
या प्रीत की गुफ़्तार से,
हर परदे की आड़ से परख के
रूप एक ही सच का पाया
सरगोशी करता इकरार से -
रस्मों के दिए अधिकार से परे
हमें तुम से प्यार है।


Wednesday, February 22, 2017

No smooth ascent or descent
on elevators and escalators
I see-saw
Joyriding through life!

बहाओ

कुछ के कटाक्ष
मन तड़पा गए 
कुछ की अनकहे सहज भाव 
दिल सहला गए 
फिर बुद्ध सज्जन की सरगोशि 
कर्णस्पर्श कर ये समझा गए -
बस आज से आज ही तलक 
तो जीने की बात है
कल कोई साथ था 
आज किसी ने छोड़ा हाथ है 
क्या फ़र्क़ पड़ता है जब कल 
तुम्हारे ही प्रांगण में 
फिर सब से मुलाक़ात है!

Sunday, February 19, 2017

कल बीत गया
आज ठहरा है 
आने वाला कल 
है बेपरवाह 
कि तुम पे भरोसा गहरा है.
सजदा हर हाल में
शुक्र का लज़िम हुआ
नाखुदा ना सही
इश्क़ के सैलाब में
सोज़े सनम के अंजाम में
हुब्बे खुदा तो हासिल हुआ।

Saturday, February 18, 2017

worth a thousand words
is silence
that instills knowing
no hurt no pain
can undo meaning
of what being
with you brings.
It's morning time
For reflection -
Listening to heart
I seek to answer
The allegation -
'You don't care'
Not true - I object
Me Lord
More than I care
To claim
Or, be rightfully claimed
In love -
I care
To give and receive
what's just and fair.

Friday, February 17, 2017

तुम्हारी आँखों से दुनिया जब जानती थी
गुलों में रंगो, बू थी
पलटी नज़र तो ख़िजाँ बढ़ी -
इस के आँगन में
मैं ने ख़ुद को पहचाना है. 
ना तुम दामन छोड़ते हो
ना मन विरह का सिरा थामता है
धूप दे झलक अगर
एक भी किरण से
तो दीवाना दिल झूमता, मचल
उड़ने का बहाना माँगता है.

not ready, yet set to go

Small steps
Tiny measures
Everyday,
To withdraw
Inch into oblivion
It feels safe to belong
To today. 
इंसानियत का साथ
स्वार्थ में सोखा
कोरा, अधूरा होता है -
चाँद की चाँदनी
धूप की रोशनी
चिड़ियों की रागिनी
में बसूँ कुछ ठौर
फिर तो ये साँस चले।
कुछ ने ख़ूब साथ निभाया है मेरे दर्द में
खुदा करे कभी उन्हें कोई चोट ना हो.

Monday, February 13, 2017

I'd thought this year
I will finally
Have my Valentine
He'll pamper my soul
Will make me feel dear
Until all hopes
Were stripped away
To bare
Soul of the man -
Its sold
It's captive to fear!

प्यार के बलात्कार पर 
सुना है
समूची खिलकत रोती है.
और तुम्हारी क़ुदरत?
क्या ख़ामोश 
इस रुदन के साक्षी रहोगे?
 
When love chooses
To desecrate
All good and beauty
Fail to avail;
Simplicity is easy casualty
Even if staying alive
Is at stake!
Goodness and simplicity
Said to allure of deceit
That we withhold and restrain
Is not coz there isn't any pain
We hold fort
For love and peace,
Keep sush
Endure, not hurt to regain
For justice to prevail
We'll not push
Nor endeavour to get even
But hey ho -
Heed be warned
Respect - my lines
For I will not let you trespass
Beyond your boundaries of  lust
To slaughter self worth
Within my peaceful domain.

Wednesday, February 08, 2017

बिन मानी चिराग़ों को बुझा के
थपक दो सूला दो
मेरे कल को भुलवा दो 
क़ि अब सच सींचने को
और आंसू नहीं मेरे पास ।

Tuesday, February 07, 2017

Their eyes met
for a moment to get 
glimpse of Self
in the other's soul.
Both were a part filled bowl,
that clanged for a while 
to cheer and mate, 
to quench
with fervour 
they attempted
to devour 
to take fill of the other
without a pause to exchange 
or, give more of one
to other 
so half that's better 
could sustain -
they moved on,
for illusionary gain..

They departed 
each on way 
chosen on preference of their own
using urgings of mind,
despair and despise,
and not dictums of heart
to guide 
Which path they'd walk
paths that had been trod before
by so many akin
but not by traveller who listens
to solo tune that's their own
they cared not to savour 
the nectar 
they'd blessed with
in depths of their soul
Like so many other
they chose to suckle, 
not nourish nor offer succour
to be togetheras One -
being complete 
in their whole and sole.

Little wonder it was -
they were lost again
from being near to Eden
they turned 
as they chose -
to further wander 
on the lone!

Friday, February 03, 2017

Simplicity is my flaw
I'm told
When I lived so
Believing -
It's Your will Your law!

offering

Overcoming all fears
I've bid adieu
To all that takes
Me away from You.

Sunday, January 29, 2017

प्रिये -
आंख खुली जो बिस्तर पे 
भयावह स्वपन था मन को दहला गया 
सहस बढे चले थे हाथ
तुम्हे चेताने 
जब यथार्त ये समझा गया -
कल तुम थे आज नहीं
मेरा सिरहाना तनहा है,
अब सूखे या सैलाब से
कोई आड़ नहीं इस जीवन में
ये ख्याल बस 
बिन जल मछली सा
समूचे अस्तित्व को तड़पा गया.
खुद को तुम्हरी नज़रों से पहचानने की लगन में
खो गए कुछ यूँ सनम
कि खुद को पाने की जब हुई फ़िकऱ 
फेरी निगाह, खुद पे धरी नज़र 
तो पाया
गुज़रता वक़्त धूमिल कर चला था
दृश्य और दृष्टि दोनों ही पड़ रहे हैं कम
अस्तित्व सँभालने को नहीं हम सक्षम -
सो जाते जाते मुझ से मेरी पहचान करा दो.


Friday, January 27, 2017

exiled

I stand at brink
of sweet city of love
where I belong,
I long
To be home
I long to be held
in beloved's arms.
It is guarded well however
by soldiers who are
of my very own;
without siren or bugle to warn
they hurl to hurt;
wounded I stand alone
to face arrows and darts
of judgement
that sting at heart
How do i hit back
or retaliate,
knowing full well
that with my Prince on retreat
having signed Royal decree
that I'm ransom
for treasures he seeks
I am consigned forever
to the outskirts
of the city that I love. 

Tuesday, January 24, 2017

चलो अब इंतज़ार नहीं करेंगे
घड़ी की टिक टिक
वक़्त की रफ़्तार से फ़रियाद नहीं करेंगे
तुम्हारी बातों से दिल धड़कता है
तुम से मिल कर सुकून मिलता है
ये अहसास फिर भी है -
जो मानी मुझे है मयस्सर
इस रिश्ते से
शायद तुम को वो नहीं मिलता है
तो लो वफ़ा के नाम पे
हम ख़ुद में ख़ुद को रोक लेते हैं
लबों को सिल. लफ़्ज़ों को लोरी देते हैं
मगर ये कैसे कह दें
कि हर पल
ना होगा साथ ख़्याल
ये क्योंकर मुमकिन है
कि ज़िंदा हम तो रहेंगे
और तुम्हें याद नहीं करेंगे?



Saturday, January 21, 2017

Happy - The end

A new story -
Set to a new scene
It still has at play
An older you, a lighter me.

This time I dance
In light of love
So suavely I move
As you waltz me upon your feet
Tapping to your tune
I glide
Gracefully held at waist
When there's a trip
Heels are glued
I am braced against a fall
You've tugged me close
I stand tall
Without fear of what'll befall
Your heart's rhythm
Is fuel
To lighten my smile
Hugged, held safe in embrace
I know whats it like
To be complete
The cool of rain drop
Is felt
As it comes to rest
Over high curve of cheek
With a sigh that spells
Best of consummation
It has dissolved with that drop of tear
It knows this moment
From yester-year.


Thursday, January 19, 2017

Banquet is over


The Host ushers me in
To a splendour of colours 
Delightful aroma 
Lavishly served 
To pamper every sense
I can choose
Have what I want
Inner voice whispers 
To the roving gaze
Taking stock 
Of the platters 
To make my pick 
Just when I realise -
You are not on the menu
You are not on my list
Hmmmm....
I ignore
The bite of desire
 pang
The song that
Heart yearned it sang,
With a final look 
I withdraw to rise 
Smile polite 
And speak
To the lady eyeing from close by
I say -
Here have my seat
I'd rather fast
And be on my way
For he for whom I hunger
Isn't meant for me.


Wednesday, January 18, 2017

कहानी तुम्हारी किरदार तुम्हारे,
फिर हम कौन लिखे में तब्दीली लाने वाले?

Tuesday, January 17, 2017

Who do I deny
Myself or you?
How do I lie?
To who should I be true to -
The fear that drives you
Or desire that makes me alive?

Saturday, January 14, 2017

मारका ए इश्क़ में
मांगना अब ऐब है
सो मैं भी खामोश हुँ
वो भी खामोश हैं
उनको सब है खबर
इस लिए चुप हुँ मैं
क्या हुआ जो ऑंख मैं
थोड़ी नमी आ गयी!


Friday, January 13, 2017

He wants to shortchange -
Love with friendship
Honesty with hypocrisy
Commitment with closure
So in stillness
I say
I love you
And turn away.

👆🏽 That happened when physical shingles wrestles with with emotional shingles on a snowy cold January day.

dosti ya kutti?

प्यार को दोस्त बनाने की कोशिश जारी है
वह भूल गए हैं -
ये मेरा इश्क़ है, मेरी तर्ज़ यारी है।

Tuesday, January 10, 2017

अमीरी का पैमाना यूँ तो है 
सिक्कों का हिसाब
लोग इसी लिए जमा करते हैं दौलत. ए जनाब 
पर मेरी पुंजी तो है बस
उनसे मिले लफ़्ज़, जुमले
और उनसे जुड़े जीने मारने के एहसास 
सो आज खोली जो गिरह 
पोटली की - वक़्त बोल उठा 
अनाड़ी हुँ इस रहगुजर पे 
समझ न पायी 
कैसे हुवे तब्दील जज़्बात? 
अभी कल तलक तो 
I love you 
पे तक़दीर का तकिया 
मेरा याराना था 
आज I love her 
का मिला खोखला नज़राना है...,


दर्द का हिसाब दिल क्या रखे
वो है तो ज़िंदगी का अहसास है!

Monday, January 09, 2017

सलाह टैगोर और गुलज़ार की है
सो कैसे भला टाली जाये,
चलो इसी बात पे
रोके लेते हैं खुद को हम -
कर देते देते है मद्धम
अपने उम्मीद के दीये की जलन,
फूल रख देते हैं अलग सीने से -
गुलदस्ते में सजे
दूर सही, दिखते तो हैं,
नदी का काम है बहना
उसे बांधें क्यूँकर?
लहरों को छू के हवा
रूखसार से सटती तो है;
लेकिन दिल के साज को न छेड़ें
ये शर्त ज़रा मुश्किल सी है
बड़े दिन बंद कमरे में
थे ये ख़ामोश पड़े
हौले से भी हाथ फिरा लुँ
तो चटख़ जाएँगे क्या?
मजबूर हुँ -
छेड़ूँ नहीं जो मन की मैं धुन
साज़ तो बच जाएगा
हम ख़ुद ही बिखर जाएँगे
.....
मेरे साज़ को सुर बेसुर ही सही
बस बजने दो यार!

Sunday, January 08, 2017

पहाड़.के पद पर पड़ी 
नज़र ने पाया 
उंचाई टूटी
रेज़ा हो पड़ी थी 
ख़ाक पर पड़े आड़े तिरछे
भटकते निशान
विखरे तो सेहरा
की रेत बन गये!

जब उठी नज़र 
उंच्चाईयो की तलाश मे
तो पाया -
गर्द का ग़ुबार जुटा
ज़मीन के सायों को छोड़ चला
छोटों बडे कंकड़ पत्थर बने 
और बढे तो चट्टान बन 
गगन तले अंकित 
स्थिर चोटी के एकाकीपन
का प्रमाण बन गये !

I lose myself
to loosen grip
of longing and desire
Only to slip
and find again
A self whose quest
was written by Decree
to be fulfilled
by love alone.

कभी आँख ना मिलाना
कि दिल का ये मर्म स्थल है
नेत्र से चले हथियार पिघला देते है
उठती चढ़ती सांसों को बहका देते हैं
पलक झपकने से पहले
कर देते हैं ये घायल,
सो लो संभल
ज़रा जो तू बढ़ा चपल
प्रीत के शीत को पाने को उत्छल
कर देते हैं ये घायल,
न नयन मिला
पलकों की चादर तान ज़रा
ये प्रीत मह्ज़  भुलावा है 
in my thirst
i am perched upon sand dune
watching warm wind blow dust
in the direction of oasis -
my oasis is right ahead
open and welcoming
cool and alluring
to senses left long to dry
but why?
Why am i imprisoned
without pins and shackles
I'm held captive
against call of my season -
self respect or surrender?
which is the reason
that makes me withhold
leaving unquenched
yearnings of my soul.